कोटद्वार में धड़ल्ले से चल रहा अवैध खनन का काला खेल, माफियाओं और सिस्टम की नाकामी की खुली कहानी !
उत्तरखंड के कोटद्वार में सरकारी नीतियों और अधिकारियों की मौजूदगी के बावजूद खनन माफियाओं का तंत्र पहले से कहीं अधिक मजबूत दिखाई देता है. सुबह से लेकर देर रात तक बड़ी-बड़ी मशीने और ट्रक नदी के सीने को बेरहमी से चीरते नज़र आते हैं.

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Kotdwar (Uttarakhand): कोटद्वार का सुखरो नदी क्षेत्र इन दिनों अवैध खनन माफियाओं के कब्जे में नजर आता है. पहाड़ों की गोद में बहने वाली यह नदी अब प्राकृतिक संसाधनों का स्रोत नहीं, बल्कि खनन के काले कारोबार का केंद्र बन चुकी है. हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि सरकारी नीतियों और अधिकारियों की मौजूदगी के बावजूद खनन माफियाओं का तंत्र पहले से कहीं अधिक मजबूत दिखाई देता है. नई खनन नीति के तहत अधिकृत घाटों पर नियंत्रित चुगान के दावे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में नियमों और मानकों का खुला उल्लंघन साफ देखा जा सकता है.
अपनी जगह से खिसके मिले कई सुरक्षा ब्लॉक !
पिछले कई दिनों से सुखरो नदी में खनन कार्य तेज़ी से जारी है. स्थानीय लोग बताते हैं कि सुबह से लेकर देर रात तक बड़ी-बड़ी मशीने और ट्रक नदी के सीने को बेरहमी से चीरते नज़र आते हैं. निरीक्षण के दौरान यह तथ्य सामने आया कि सुरक्षा के लिए बनाई गई नदी संरक्षण दीवारों की नींव तक को गंभीर नुकसान पहुंचा है. कई जगह सुरक्षा ब्लॉक अपनी जगह से खिसके हुए मिले, जिसे देखकर मौके पर मौजूद खनन अधिकारी तक दंग रह गए. वहीं इस संबंध में अधिकारियों ने चिंता जताते हुए कहा कि इस तरह की लापरवाही भविष्य में बाढ़, मिट्टी कटाव और आसपास की बस्तियों के लिए गंभीर खतरा बन सकती है.
निरीक्षण टीम ने जब नदी के अलग-अलग हिस्सों का जायजा लिया, तो उन्हें कई ऐसी जगह मिलीं जहां गहराई और चौड़ाई के मानकों का खुला उल्लंघन किया गया था. नियमों के अनुसार, जिस जगह से केवल सीमित मात्रा में सामग्री निकालने की अनुमति होती है, वहां खनन माफियाओं ने गहराई को कई फीट और चौड़ाई को कई मीटर तक बढ़ा दिया है. यह न केवल पर्यावरणीय क्षरण को बढ़ावा देता है, बल्कि नदी के प्राकृतिक प्रवाह को भी प्रभावित करता है.
भ्रष्टाचार के कारण खनन माफियाओं को मिली खुली छूट ?
सबसे चौंकाने वाली बात तब सामने आई, जब अधिकारियों ने मौके पर बिना नंबर प्लेट और बिना पंजीकरण वाले वाहनों को खनन सामग्री ले जाते हुए देखा. सवाल उठता है कि ऐसे वाहनों को Transit Pass (रवान्ना) आखिर कैसे जारी किया जा रहा है? क्या यह सिस्टम की नाकामी है या फिर भ्रष्टाचार के कारण खनन माफियाओं को खुली छूट मिली हुई है? स्थानीय लोग मानते हैं कि कुछ प्रभावशाली लोगों की मिलीभगत के कारण यह पूरा खेल वर्षों से फल-फूल रहा है, और प्रशासनिक सख्ती केवल कागजों में ही दिखाई देती है.
निरीक्षण के दौरान अधिकारियों ने मौके पर कई वाहनों को रोका और दस्तावेजों की गहन जांच की. जिन वाहनों के कागज़ अधूरे पाए गए, उन्हें मौके पर ही नोटिस जारी किया गया. अधिकारियों ने साफ किया कि आने वाले समय में यह कार्रवाई और अधिक कठोर होने वाली है. विभाग अब पूरे मामले की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर रहा है और नियम तोड़ने वाले वाहन मालिकों व पट्टा धारकों पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी.
केवल औपचारिक कार्यवाही कर रहा प्रशासन- स्थानीय
सुखरो नदी पर खनन से हो रहे पर्यावरणीय नुकसान की भी अनदेखी नहीं की जा सकती. अनियंत्रित खनन के कारण नदी की गहराई अनियमित हो जाती है, जिससे मानसून के दौरान पानी का बहाव तेज़ होकर आसपास की बस्तियों को खतरा पैदा कर सकता है. मिट्टी कटाव बढ़ने से खेती-किसानी पर भी असर पड़ता है. इसके अलावा नदी का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने का खतरा भी गंभीर है. स्थानीय जनता का कहना है कि प्रशासन केवल औपचारिक कार्यवाही कर रहा है.
असल समस्या यह है कि अवैध खनन में शामिल वाहन रात के अंधेरे में बेरोक-टोक चलाए जाते हैं, और जब तक प्रशासन मौके पर पहुंचता है, तब तक पूरा नेटवर्क गायब हो जाता है. यही वजह है कि माफिया और सिस्टम की मिलीभगत का आरोप बार-बार उठता रहा है. कुल मिलाकर, सुखरो नदी पर अवैध खनन का यह काला खेल अब सिर्फ नियम उल्लंघन भर नहीं, बल्कि एक बड़ा पर्यावरणीय, सामाजिक और प्रशासनिक संकट बन चुका है. यदि प्रशासन ने जल्द सख्त कदम नहीं उठाए, तो आने वाले समय में इसका खामियाजा कोटद्वार की जनता और पर्यावरण दोनों को भुगतना पड़ेगा.
संवाददाता- नितिन कुमार




